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राफेल का दृश्यम

राहुल गाँधी राफेल के एपिसोड को लेकर जिस तरह से लगातार झूठ बोल रहे हैं और उससे यही लगता है कि उनके सलाहकार इस बात में विश्वास करते हैं कि 100 बार एक ही झूठ को बोलो तो सब उसे सच मान लेते हैं। शायद वो लोग दृश्यम फिल्म से बहुत ज्यादा प्रभावित हैं और मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ इसका जवाब अंत में मिल जायेगा। 

सबसे पहले देखते हैं इस घटनाक्रम का पूरा सार 

कहानी की शुरुआत

1999 में कारगिल वार के बाद लड़ाकू विमान की जरुरत लगी | 2001 में भारतीय वायु सेना ने इसकी जरुरत सरकार के सामने रखी। तत्कालीन अटल सरकार ने कुछ विमानों का परिक्षण भी किया।

2004 में सरकार बदल गयी और 2007 में विमानों के लिए टेंडर निकाला गया । 2012 में जाकर दसॉ को फाइनल किया गया | दसॉ (Dassault) के साथ कई राउंड की बात के बाद भी कोई बात आगे नहीं बढ़ पाई और कोई डील नहीं हुआ2014 में मोदी सरकार आने के बाद बात ने फिर जोर पकड़ा और भारत की मोदी सरकार ने सीधे फ्रांस सरकार के साथ बात करना शुरू किया और डील भी कर लिया। 

डील क्या था और विवाद कहाँ चालू हुआ ?

UPA सरकार ने, 2007 में 126 विमानों का टेंडर मंगाया जिसमे 18 तुरंत तैयार हालत (Ready to fly-away condition) में आने थे बाकी भारत के HAL (Hindustan Aeronautics Limited) मे बनते मतलब तकनीक का ट्रांसफर (Transfer of Technology – ToT) होता लेकिन इन वजहों से कुछ बात आगे नहीं बढ़ पाई –

अब मोदी सरकार ने सीधे फ्रांस सरकार की मध्यस्तता के साथ दसॉ से तैयार हालत में 36 विमान की 58000 करोड़ में  डील कर ली, जिसका 15% एडवांस में देना था । इसके बाद 50% ओफ़्सेट डील (Offset Deal) की बात थी जिसके तहत दसॉ भारत की कई कंपनियों को रक्षा उत्पादन में सहयोग, रफाल के पार्ट्स इत्यादि बनाने में सहयोग करने के उद्देश्य से 30000 करोड़ का निवेश करेगा और इससे बने उत्पाद को भारत अपने यहाँ या किसी बाहरी को भी बेंच सकता है।

UPA सरकार की “काल्पनिक” डील और NDA सरकार की असली डील का फर्क –

विवाद की शुरुआत 

विवाद # 1 

सबसे पहली शुरुआत कीमत को लेकर हुयी।  कोंग्रेसी नेता कपिल सिब्बल ने कुछ कीमत बताई जो की पूरी काल्पनिक डील का हिस्सा था और राहुल गाँधी ने कई मौकों पर अलग अलग कीमत बताई जो कि NDA की डील से लगभग 3 गुना  कम थी।
संसद में 520 करोड़  
कर्नाटक में 526 करोड़ 
राजस्थान में 540 करोड़ 
दिल्ली में 700 करोड़ 

BJP Tweets on Rahul Gandhi’s Lies
सच्चाई –

लेकिन सचाई ये है कि कोई ऐसी डील हुयी ही नहीं थी। सरकार बात कर रही थी लेकिन कुछ फाइनल नहीं हुआ था।  दूसरी सच्चाई ये हैं इस काल्पनिक डील में विमान खाली आता जो की किसी काम का नहीं था क्योंकि ये एक लड़ाकू विमान बिना हथियार के था, जिसकी सबसे अच्छी जगह सीमा की बजाय म्यूजियम में होती शायद।

विपक्ष राफेल  के पूरी कीमत की मांग कर रहा है जिसे भारत सरकार बताने से मन कर रही है जिसके मुख्य दो वजह है –

सुप्रीम कोर्ट ने भी कह दिया है कि इस डील में कीमतों को लेकर कुछ  गलत नहीं हुआ है। 

विवाद # 2

ओफ़्सेट डील को लेकर जिसमे अनिल अम्बानी की रिलायंस का जिक्र है। आरोप हैं कि नरेंद्र मोदी के सीधे हस्तक्षेप की वजह से  रिलायंस को 30000 करोड़ डील मिली और HAL को कुछ नहीं। 

सच्चाई –

पहले भी UPA सरकार के समय रिलायंस (मुकेश अम्बानी वाली ) भी डील की ओफ़्सेट पार्टनर होने वाली थी। 

दसॉ को HAL से मुख्य इश्यू उनके 2.7 गुना टाइम को लेकर था तो मोदी सरकार के डील के समय दसॉ ने HAL को कंसीडर ही नहीं किया।  मुकेश अम्बानी की कंपनी ने भी 2014 में इस क्षेत्र से हाथ पीछे खींच लिया।

इस ओफ़्सेट पार्टनरशिप दसो ने भारत की कई कंपनियों के साथ जॉइंट वेंचर किया है जिसमे अनिल अम्बानी की कंपनी के साथ हुआ वेंचर DRAL ( Dassault Reliance Aviation Limited) हैं।  साथ ही दसॉ की सहयोगी कंपनी Thales और Safran भी भारत की कई कंपनियों के साथ ज्वाइन वेंचर करेंगी।  जैसे Safran HAL के साथ और Thales भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) और लार्सन एंड टूब्रो (L&T) के साथ। 

इसके साथ और भी 72 और भारतीय  कम्पनिया होंगी तो साफ़ जाहिर है कि दसॉ 30000 करोड़ का निवेश भारत की 72 कंपनियों के साथ करेगी जिसमे से अनिल अम्बानी की DRAL को 3% ही मिलेगा मतलब की लगभग 850 करोड़ ना कि 30000 करोड़ जैसा कि राहुल गाँधी झूठा प्रचार कर रहे हैं।


सुप्रीम कोर्ट भी ओफ़्सेट वाली बात पर सरकार को क्लीन चिट दे चुका है। 

NDA सरकार की गलती 

एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने बोल दिया की हम कीमते बता देंगे और उनके रे मंत्री ने कुछ हद तक कीमतों का खुलासा भी कर दिया लेकिन बात में और डिटेल देने से मुकर गए।  

विवाद में नया ट्विस्ट 

प्रतिष्ठित समाचार ग्रुप द हिन्दू ने एक दिन रक्षा मंत्रलय का एक नोट प्रकाशित किया जिसमे प्रधानमंत्री कार्यालय के हस्तक्षेप की ऐतराज की गयी थी।

राहुल गाँधी ने इसपर सरकार को खरी खोटी सुनाया लेकिन बाद में पता चला कि द हिन्दू ने  नोट का केवल आंशिक भाग छापा था और मुख्य भाग छिपा लिया था जिसमे तत्कालीन रक्षा मंत्री ने अपनी बात कहते हुए इसे नकारा था और भी पता चला कि ये आरोप रक्षा मंत्रालय के इस अधिकारी ने लगाया था जिसका इस डील से कुछ लेना देना भी नहीं है और इस डील के मुखिया ने द हिन्दू की बात को पूरी तरह नकार दिया। इस घटना के बारे में और जानकारी के लिए आप देख सकते हैं – 


हाँ, और एक बात – अगर प्रधानमंत्री कार्यालय का हतस्क्षेप था तो भी किसी को कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए क्योकि इसके पहले दलालों के ही मार्फ़त डील होती थी।  बोफोर्स का उदाहरण सबके सामने हैं। 

राफेल की डील से एंटी-करप्शन क्लॉज़ का निकलना 

11 फरवरी को द हिन्दू न्यूज़ पेपर ने दूसरा बम छोड़ा कि सरकार ने एंटी करप्शन क्लॉज़ राफेल की डील से निकाल दिया था।  
उसका खंडन करते हुए राफेल डील के मुखिया एयर मार्शल SBP सिन्हा में कहा कि जब दो सरकारों के बीच कोई डील होती है तो ऐसा क्लॉज़ नहीं होता।  पहले भी बिना एंटी करप्शन क्लॉज़ के अमेरिका और रूस की सरकारों के साथ होते रहे हैं। फ़्रांस तीसरा देश है जिसके साथ भारत सरकार के स्तर (Inter Government Coodination) पर डील कर रहा है। 

अनिल अम्बानी के ईमेल के सहारे झूठ 

राहुल गाँधी ने नया झूठ फेका जो कि उनके अनिल अम्बानी के एयरबस कंपनी के अफसर के साथ ईमेल के बारे में था।  ईमेल का कंटेंट सबके सामने आया और उनका नया झूठ भी पर्दाफास हो गया।  और हाँ, अनिल अम्बानी की कंपनी ने भी इसपर सफाई दे दिए हैं कि ये पूरा मामला हेलीकाप्टर की डील से सम्बंधित है और जो कि अनिल अम्बानी की कंपनी को नहीं बल्कि महिंद्रा ग्रुप को मिला।  

खैर, अब मुझे राहुल राहुल पर तरस आता है।  लगता है उनके कोंग्रेसी ही बेचारे की मिटटी पलीद करने में लगे हैं।  हाँ इस तरस का मतलब उनको वोट नहीं क्योकि इसके बाद तो मोदी पर विश्वास और बढ़ गया हैं।  

इस पुरे ईमेल विवाद का आजतक पर फैक्ट चेक खुद ही देख लीजिये 

राफेल का दृश्यम, क्यों और कैसे 

अब वापस आते हैं इसके शीर्षक पर कि मैंने इसमें दृश्यम फिल्म  को क्यों लपेट दिया ?

उसका सीधा जवाब यह है कि वहां अभिनेता अजय देवगन झूठ बोलते है और यहाँ नेता राहुल गाँधी और दोनों का मकसद अपने परिवार को बचाना रहता है।  हाँ, अजय देवगन और उनका परिवार एक ही बात पर टिका रहते है जबकि यहाँ राहुल गाँधी और उनकी परिवार पार्टी रोज़ पुरानी बात में नया एंगल  जोड़ कर अपनी विश्वसनीयता को ख़त्म कर रहे हैं | साथ में वे एक बात भूल गए कि 1 झूठ को छिपाने के लिए 100 झूठ बोलने पड़ते हैं और फिर सच बोलने से भी ज्यादा सावधान रहना पड़ता है | 

खैर यही राजनीति है और उम्मीद करता हूँ कि पूरी बातों की आसान भाषा में समझा पाया और पढ़ने के बाद आपको यह निर्णय लेने में आसानी होगी कि कौन सही और कौन गलत है।    

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