अबकी बार, किसको वोट दें यार

Atul Sharma

चुनावी माहौल है। सब लोग अपने अपने विचार दे रहे हैं कि किसे वोट देना चाहिए। कोई NOTA की बात करता है तो कोई अपने पसंदीदा अभिनेता की, कोई निर्दलीय की बात करता है तो कोई गुंडे को।  मेरा एक आकलन कि हमें किसे वोट करना चाहिए ?

1. NOTA के लिए –

मैंने इसपर पहले ही काफी विस्तार से लिखा है कि NOTA क्यों नहीं ? सुनाने में अच्छा लगता है लेकिन नोटा आधा अधूरा  है किसी अधपके खाने की तरह और कोई कच्चा खाना नहीं खाता है। अधपका इसलिए कि अगर NOTA को सबसे ज्यादे वोट पड़े तो भी अगला कम वोट पाने वाला कैंडिडेट जीत जायेगा और आपका वोट बेकार होगा। ज्यादा जानकारी के लिए ये पढ़े।

2. निर्दलीय को वोट –

निर्दलीय उम्मीदवार थाली में रखे बैंगन की तरह है कि कब किधर लुढ़क जाये पता ही नहीं चलता।  इससे बेहतर है किसी राजनीतिक दल वाले नेता को वोट करें जिसके कि दल बदल के चान्सेस बहुत काम होंगे क्योकि इससे उसकी सदस्यता चली जाएगी। 

3. कमजोर दल, अच्छा नेता –

अगर कमजोर दल का कैंडिडेट बहुत अच्छा है और मज़बूत पार्टी का कैंडिडेट उतना नहीं तो फिर भी मजबूत दल के ही नेता को वोट करें। 
इस एक उदाहरण के साथ समझते हैं – अगर आपके क्षेत्र का भाजपा का उम्मीदवार कांग्रेस से थोड़ा कमजोर है और अपनी अच्छी छवि की वजह से कांग्रेस उम्मीदवार जीत जाता है तो संसद में वो अपनी पार्टी के खिलाफ नहीं जा सकता
है । अविश्वास प्रस्ताव या किसी बिल पर वोटिंग होगी और अगर कांग्रेस पार्टी ने व्हिप जारी कर दिया तो आपके अच्छी छवि वाले नेता को भी कांग्रेस के लिए ही वोट करना पडेगा, नहीं तो उसकी सदस्यता चली जाएगी और आपको निराशा होगी।

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एक हुए उदाहरण लेते हैं  – मीडिया और लिबरल्स के द्वारा प्रचारित और समर्थिक आम आदमी पार्टी उम्मीदवार
अतिशी कहती है कि गुंडे को वोट दे लो चलेगा लेकिन भाजपा को मत दो। 

4. मजबूत दल, मजबूत सरकार –

लोक सभा का चुनाव देश का प्रधानमंत्री चुनने के लिए होता जिससे कि देश की नीतियां और क़ानून बनते हैं इसके लिए मजबूत सरकार और मजबूत प्रधानमंत्री जरुरी है। स्थानीय मुद्दों के लिए आप स्थानीय स्तर के नेता चुनते ही हैं।

गठबंधन की सरकारों का इतिहास 

अब गठबंधन या आज के दौर का महागठबंधन क्यों बुरा है इसके लिए आज तक के देश में बने गठबंधन के सरकारों पर एक नज़र डाल लेते हैं –

1. मोरार जी देसाई की सरकार (मार्च 1977 में बनी सरकार जून 1979) –

इंदिरा गाँधी के इमर्जेन्सी के बाद ये सरकार बनी, कई पार्टियों के अलग अलग विचारधारा वाले साथ आये और मार्च 1977 में बनी सरकार जून 1979 में गिर गयी मतलब 857 दिनों की सरकार।

2. चौधरी चरण सिंह की सरकार (जुलाई 1979 से जनवरी 1980) –

मोरार जी देसाई के बाद चरण सिंह  171 दिनों के लिए प्रधानमंत्री बने और लेकिन अपना बहुमत नहीं साबित कर पाए और दुबारा चुनाव हुए और इंदिरा गाँधी की पूर्ण बहुमत से  वापसी हुयी।

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3. वी पी सिंह की सरकार (दिसंबर 1989 से नवम्बर 1990 ) –

344 दिनों की खिचड़ी सरकार का पतन भयंकर दाल बदल और गठजोड़ से हुआ और चंद्र शेखर पं बने।

4. चंद्र शेखर की सरकार (नवम्बर 1990 से जून 1991 ) –

जोड़तोड़ की यह सरकार 224 दिन में  हो गयी और फिर देश में नए चुनाव हुए।

5. अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार –

मई 1996 में अटल  जी के नेतृत्व में बनी सरकार १३ दिन में ख़त्म हो गयी।

6. देवेगौड़ा की सरकार (जून 1996 से अप्रैल 1997 ) –

अटल जी के बाद देवेगौड़ा ने कांग्रेस के बाहरी समर्थन से अपनी सरकार 325 दिन के लिए चलायी और अंत वही हुआ जैसे पिछली गठबंधन सरकारों का हुआ था।

7. गुजराल की सरकार (अप्रेल 1997 से मार्च 1998 ) –

देवेगौड़ा के बाद इंद्र कुमार गुजराल ने 333 दिनों के लिए गठबंधन किया और फिर कांग्रेस ने समर्थन खींचकर देश को नए चुनाव में झोक दिया।

8. अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार (मार्च 1998 से अप्रैल 1999 ) – 

394 दिनों की यह सरकार जयललिता की मांगों के आगे हार गयी और फिर देश में नए चनाव हुए।

अब बात करते हैं 3 और गठबंधन लेकिन मजबूत सरकारों की –

1. पी वी नरसिंहा राव की सरकार –

चंद्रशेखर के बाद 1991 में राजीव गाँधी की हत्या के परिणामस्वरूप संवेदना लहर में कांग्रेस को 244 सीटें मिली और नरसिंहा राव की सरकार ने कुछ छोटे दलों के साथ मिलकर अपना कार्यकाल पूरा किया।

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2. अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार –

पोखरण-2 और कारगिल वार के विजय लहर पर सवार इसबार अटल जी ने भाजपा को 182 सीटें जितायी और NDA (चुनाव पूर्व गठबंधन ) को 303 सीटें मिली और इस बार की सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा किया।

3. UPA-1 और UPA-2 की सरकार –

यह सुरक्षित सरकार थी लेकिन मजबूत कत्तई नहीं। बहुत से घोटाले हुए , सत्ता के दो केंद्र थे – PMO (Headed by PM Manmohan Singh) और NAC (Headed by Mrs. Sonia Gandhi)

इससे हम देख सकते हैं कि अगर कांग्रेस के नेतृत्व में सरकार बनी तो चल जाती है लेकिन अगर कांग्रेस ने किसी और को समर्थन दिया तो सरकार का गिरना निश्चित है और अगले चुनाव का खर्च आप पर ही आएगा। 

मौजूदा हालात में कांग्रेस कहीं से भी सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है। कांग्रेस के PM चेहरा राहुल गाँधी जी की इमेज नेता कम और कॉमेडियन की ज्यादा है और उनके सामने मज़बूत नेता भाजपा के नरेंद्र मोदी और उनका काम है।

दूसरी बात चलने वाली गठबंधन सरकारें समान विचारधारा वाली पार्टियों के साथ ही चल पायी। आज का महाठगबंधन के सारे नेताओं में केवल दो ही समानता है –

  • मोदी से अपने राजनीतिक करियर को बचाना
  • खुद प्रधानमंत्री बनना 

और भारतीय लोकतंत्र बहुत ही भयावह स्थिति में जाती हुयी दिख रही है।

वोट अपना, फैसला अपना, क्योकि देश और सरकार भी अपनी ही है।