चुनाव में नोटा (NOTA) को “हाँ” या “ना” ?

Atul Sharma

चुनावी माहौल है।  प्रचार जोरों शोरों से चल रहा है।  सब लगे हैं, राजनीति और गन्दी लगने लगी है और नेता मनसा, वाचा और कर्मणा (मन से, वचन से और कर्मों से ) और नीचे गिरने लगे हैं और सबको पता है कैसे। 

अब बात करते हैं अपनी जिम्मेदारियों की . ..  तो हमारी जिम्मेदारी है निश्चित डेट पर अपने पसंदीदा प्रत्याशी (कैंडिडेट) को वोट देना ।

और हाँ एक और ऑप्शन होता है नोटा NOTA (None Of The Above) का।  बहुत से असंतुष्ट, लिबरल और अलग दिखने की चाह रखने वाले लोगों को मैंने नोटा का समर्थन करते देखा है। 

हम देखते हैं कि क्या सच में नोटा एक सशक्त हथियार है ?

क्या है ये नोटा ?

27 सितम्बर 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि चुनाव आयोग को EVM में नोटा का भी ऑप्शन देगा होगा। 

We direct the Election Commission to provide necessary provision in the ballot papers/EVMs and another button called “None of the Above” (NOTA) may be provided in EVMs so that the voters, who come to the polling booth and decide not to vote for any of the candidates in the fray, are able to exercise their right not to vote while maintaining their right of secrecy.

Supreme Court of India

तो क्या यह एक नयी पहल थी ? नहीं जी, बिलकुल नहीं। 

नोटा बैलेट पेपर के समय से ही प्रचलन में था।  1961 में, चुनाव आयोग के नियम के तहत 49 -O चलन में आया। अब चूँकि बैलेट पेपर में केवल कैंडिडेट्स के नाम होते थे तो किसी मतदाता को नोटा के लिए वहां के चुनाव अधिकारी (Presiding Officer) से अनुमति लेकर रजिस्टर में अपना मत (नोटा) दर्ज करना होता था जिससे मतदाता की पहचान जाहिर हो जाती थी।

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सुप्रीम कोर्ट के 2013 के फैसले के आने के बाद प्राइवेसी वाली समस्या समाप्त हो गयी।

लेकिन पहले भी और अब भी, नोटा का चुनाव परिणामों पर कोई असर नहीं होता है।  अगर नोटा को 50% से ज्यादा वोट भी मिल जाए तो भी दूसरे नंबर का उम्मीदवार ही विजेता घोषित होगा।  किसी भी स्थिति में फिर से चुनाव या सारे प्रत्याशियों को बैन करने का कोई नियम या प्रयोजन नहीं है। 

तो फिर नोटा क्यों ? क्या नोटा का बटन दबाना चाहिए ?

इसके पहले हम देखते हैं कि जब वोट देने जाए तो अपने सबसे अच्छे (या आज के परिदृश्य में कम बुरे) प्रत्याशी की पहचान कैसे करें ?

अपना पसंदीदा प्रत्याशी कैसे चुने  ? 

जब हम मतदान करने जाते हैं तो उसके पहले थोड़ा होम वर्क करना जरुरी होता है।  वोट हम एक दिन डालते हैं लेकिन ये अगले 5 सालों के लिए होता है तो ये हमारी नैतिक जिम्मेदारी है कि कम से कम हम इन बातों पर एक बार विचार जरूर करके अपना बहुमूल्य वोट डालें –

सामाजिक छवि –
  • उस उम्मीदवार की सामाजिक छवि कैसी है?
  • पिछले 5 सालों में क्या व्यवहार रहा क्योंकि चुनाव के समय तो सब उम्मीदवार तो मतदाता के सामने नत-मस्तक खड़े ही रहते हैं।
आपराधिक इतिहास –
  • उम्मीदवार पर क्या कोई मुकदमा है ?
  • अगर है तो किस तरह के आरोप हैं ?
  • कोर्ट में बरी होने के 100 वजह हो सकते हैं लेकिन क्या सच में वो बेगुनाह है। 
  • जमानत पर है तो मामले की गंभीरता क्या है?

इन सब सवालो के जवाब हमको पब्लिक डोमेन (ADR – Association for Democratic Reforms and MyNeta ) में मिल जायेंगे। बस देश के लिए थोड़ी मेहनत की जरुरत है।  

आर्थिक स्थिति –
  • उम्मीदवार ने पिछले चुनाव और अब के बीच कितना बनाया ?
  • उसकी आर्थिक हालत में इज़ाफ़ा क्या तार्किक है ?
  • क्या उसके दिखाए डेटा आपको सही लगते हैं ?
  • वो बहुत सी बेनामी सम्पतियों का भी मालिक हो सकता है जिसकी जानकारी जनता को होती है, भले ही सरकारी दस्तावेजों में ना हो।
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जिम्मेदार प्रत्याशी –
  • क्या आपके क्षेत्र का उम्मीदवार आप और आपके क्षेत्र की समस्याओं के प्रति अपनी जिम्मेदार समझता है ?
  • क्षेत्र के विकास कार्यों में उसका योगदान कैसा रहा ?
  • इसके लिए उसके पहले किये गए कामों का रिफरेन्स ले सकते हैं। 
  • अगर बाहरी कैंडिडेट है तो उसने अपने क्षेत्र में खुद या अपने प्रतिनिधियों के प्रति कितना योगदान किया। 
  • संसद या विधान सभा में उसकी उपस्थिति कैसी रही। 
  • अगर मंत्री पद पर है तो उसका पूरा कार्यकाल कैसा रहा?

आपके क्षेत्र के प्रतिनिधि (MP) की जानकारी लोकसभा की साइट पर उपलब्ध है।  

नोटा को हाँ या नहीं ? मेरा जवाब “बिल्कुल नहीं”

मेरे ख्याल से नोटा को नहीं कहना चाहिए (We should say No to NOTA) और इसके लिए मेरे पास कई वजह है –

1. नोटा का कोई मतलब नहीं होता यानि कि आपका दिया गया वोट व्यर्थ हो गया।  ना तो समाज के निर्माण में कोई योगदान रहा न ही आपके व्यक्तिगत जीवन में।  इससे बेहतर अपना समय घर में परिवार के साथ बिता लें, सबको ज्यादा ख़ुशी होगी।

2. व्यक्तिगत जीवन में तो फायदा नहीं होगा लेकिन आपको फेसबुक, इंस्टग्राम और ट्विटर पर अपनी अंगुली के साथ फोटो लगाने का परम सौभाग्य जरूर मिल जायेगा।  तो अगर आपका मकसद, ऐसे ही दिखावा और शो ऑफ करने का है तो जरूर करें, कम से कम मेरे नज़रिये तो इतना शो ऑफ कोई मायने नहीं रखता।

3. आप भले ही नोटा दबाकर खुश हो सकते हैं लेकिन यह आपके उस असफलता और कामचोरी को दिखता है कि आप आपने क्षेत्र के एक योग्य उम्मीदवार को नहीं चुन पाए। योग्य से मेरा मतलब सबसे अच्छा नहीं बल्कि सबसे कम बुरा है।

4. यह आपकी उस आदत को दिखता है कि आप सवाल तो बहुत पूछ सकते हैं लेकिन आप के पास जवाब नहीं हैं। नोटा दबाना केवल एक शॉर्टकट और बहाना है अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों से भागने का।  

नोटा को सफल कैसे बना सकते हैं ?

अभी के हालत में नोटा का कोई मतलब नहीं क्योंकि इसका इम्प्लीमेंटशन प्रतीकात्मक (सिंबॉलिक) है।

इस हालत में चुनाव के दिन वहां जाकर नोटा दबाने से अच्छा है लोगों को इकठ्ठा करके समझाये और चुनाव के “सामूहिक बहिष्कार” का आयोजन करें। अपनी समस्याएं जन प्रतिनिधि तक पहुचाएं। जैसे इस क्षेत्रो (पुणे, महाराष्ट्र के दो गाँव, बलिया-उत्तर प्रदेश, कांगड़ा-हिमांचल प्रदेश ) की जनता कर रही है।

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अगर ये करना सरदर्द लगे तो घर में बैठकर अपने परिजनों के साथ क्वालिटी समय बिताएं या कहीं घूम आये। देश नहीं तो कम से कम परिवार वालों के लिए कुछ सकारात्मक पहल होगी।       

अगर अनिवार्य वोटिंग (Compulsory Voting) और/अथवा “फिर से चुनाव (Re-Election)” का प्रयोजन हो जाए तो NOTA का सबसे सशक्त फायदा होगा और यह सही मामले में लोकतंत्र को मजबूती मिलेगी । 
कैसे ?

अगर नोटा को सबसे ज्यादे वोट मिले तो सारे कैंडिडेट को हटाकर “नए उम्मीदवारों ” के साथ फिर से चुनाव हो। 


कुछ लोग इस फिर चुनाव वाले तर्क से सहमत नहीं है और उनका कहना है कि इससे सरकारी खर्च बढ़ेगा। 

लेकिन इसे इस जवाब से ध्वस्त किया जा सकता है  कि अगर अयोग्य नेता चुना गया तो वो देश के लिए इससे भी ज्यादा खतरनाक होगा।  उसका घोटाला उसी सरकारी खर्चे और टैक्स पेयर्स के मेहनत पसीने की कमाई से ही निकलेगा।  

आज से लगभग 10 साल पहले गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री (और वर्तमान प्रधानमंत्री) नरेंद्र मोदी जी ने लोकल चुनावों में कंपल्सरी वोटिंग पर गुजरात विधानसभा से एक बिल पास कराया था और उसी पर बात करते हुए उनका ये 10 साल पुराना लेकिन आज भी तर्कसंगत वीडियो | एक बार फिर बता देता हूँ  कि तब तक EVM में NOTA का ऑप्शन नहीं होता था क्योकि ये 2013 में आया। हालाँकि बाद में हाई कोर्ट में इस पर स्टे लग गया। 

एक बार फिर बता देता हूँ  कि तब तक EVM में NOTA का ऑप्शन नहीं होता था क्योकि ये 2013 में आया। हालाँकि बाद में हाई कोर्ट में इस पर स्टे लग गया। 


नरेंद्र मोदी Compulsory Voting और ReElection का समर्थन करते हुए 

उम्मीद करता हूँ अपनी बात आसान शब्दों में समझा पाया। आपके अपने विचार क्या हैं , जरूर बताएं ?