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ना जाने कैसी अपनी आदत है या परम्परा है कि जैसे ही कोई हमेशा के लिए चला जाता है –
उसके बाद हम उसकी तारीफ़ करने लगते हैं, भले ही कभी उससे सीधी मुंह बात न किया हो।
उसके लिए हुजूम में चलते हैं भले ही कभी उसके साथ 2 कदम भी नहीं चले होते हैं।
काश, कितना अच्छा हो जब तक वो साथ रहे तो अच्छी-बुरी सारी बातें कर ले क्योंकि बाद में तो वो अपनी तारीफ़ सुनने नहीं आएगा ना । एक मौका तो देना बनता है जीते जी उसे खुश होने का या सुधर जाने का