ये कविता पूरी उम्मीद के साथ आगे बढ़ती है और अंत में एहसास दिलाती है कि समय बदलकर सामान्य हो जायेगा लेकिन फिर भी इस बात का ख्याल रखना पड़ेगा कि वो भी बदल जायेगा।
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बांध मुट्ठी और ठान ले …
कभी राहें मुश्किल होंगी तो कभी अपने ही पीछे खींचने में लगे रहेंगे। लेकिन आगे बढ़ना है तो अकेले ही चलना है। इसलिए बांध मुट्ठी और ठान ले …
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