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जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं है, रिश्ते, लोग, व्यवहार, धन, तन और यहाँ तक कि समय भी और समय के इसी प्रवृति पर मैंने बहुत पहले 2 पंक्तियाँ लिखी थी –
खुशियां भी बहुत न रह पाई मेरे साथ,
तो इस मुश्किल घड़ी की क्या औकात,
आज का ये महामारी का बहुत मुश्किल दौर चल रहा है लेकिन इतना पक्का है कि देर या सवेर ये भी बदल जायेगा और जिंदगी सामान्य हो जाएगी।
ये कविता पूरी उम्मीद के साथ आगे बढ़ती है और आखिरी अंतरे में याद दिलाती है कि भले ही समय बदलकर सामान्य हो जायेगा लेकिन फिर भी इस बात का ख्याल रखना कि वो भी फिर बदल जायेगा।